गर्भावस्था में निम्न समयानुसार सोनोग्रॉफी की सलाह दी जाती है-
प्रथम सोनोग्राफी:- 7-9 हफ्ते में की जाती है। - इससे निम्न जानकारी प्राप्त होती है-
1. गर्भ समय पर ठहरा है या नही।
2. बच्चे की धड़कन आई है या नही । 7 हफ्ते में सोनोग्राफी द्वारा बच्चे की धड़कन देखी जा सकती है।
3. जुड़वा बच्चे तो नही है।
4. बच्चा नस में तो नही ठहरा है। कभी-कभी गर्भ बच्चेदानी में न ठहरकर, नस में (ectopic pregnancy) अंडाशय या पेट में ठहर सकता है। यदि यह समय पर न पता लग पाये तो महिला के लिए बहुत खतरनाक हो सकता है।
द्वितीय सोनोग्राफी:- 11 से 13.6 हफ्ते सोनोग्राफी - यह लगभग तीन माह होने पर की जाती है। तात्कालिक गाईड लाइन्स (Recent Guidelines) के अनुसार तो यह सोनोग्राफी सभी महिलाओं को कराना चाहिए। पर 30 साल से ज्यादा की उम्र में होने पर इस सोनोग्राफी को अवश्य करवाना चाहिए। जैसे -जैसे महिला की उम्र बढ़ती है बच्चे में मानसिक मन्दता (Down Syndrome) की सम्भावना बढ़ती है। इस समय की सोनोग्राफी में कुछ ऐसे लक्षण दिखायी देते है, जिनसे इसकी सम्भावना का पता लगाया जा सकता है। व कुछ विशेष जाँचों से निश्चित किया जा सकता है।
तृतीया सोनोग्राफी:- टारगेट स्केन 18-22 सप्ताह सोनोग्रॉफी
- टारगेट स्केन (Target Scan) - इसमें शिशु के प्रत्येक अंग की विस्तृत जांच कर अधिकतर जन्मगत विकृतियों का पता लगाया जा सकता है साथ ही सोनोग्राफी में बच्चे का विकास भी देखा जाता है। इसके बाद की सोनोग्राफी आपका गयनेकोलॉजिस्ट निश्चित करती है। यदि नियमित जाँच (Routine Examination) के दौरान उन्हे बच्चे के विकास में कमी लग रही है या पानी कम लग रहा है या आपको हाई ब्लड प्रेशर या डायबिटिस है तो वे आपको सोनोग्राफी (Growth Scan) के लिये कह सकते है।
- डॉपलर स्टडी (Doppler Study) - यह जाँच भी सोनोग्राफी मशीन के द्वारा की जाती है। इसके द्वारा बच्चे की नसों का अध्ययन किया जाता है। इन नसों के अध्ययन से गर्भ में पल रहा बच्चा स्वस्थ है या नही का पता लगाया जाता है। यह सभी महिलाओ में नही किया जाता है। जटील गर्भावस्था (High Risk Pregnancy), जैसे बच्चे में पानी की कमी, हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, बच्चे के विकास में कमी इत्यादि, में क्रमानुसार यदि नसों का अध्यन किया जाये तो बच्चो के स्वस्थ व डिलीवरी का समय निश्चित कर सकते है।