Hello. Back Pain problem due to Bike riding is common. Ayurveda can solve your problem.
Read this article by me.
मनुष्य शरीर का आधार होता है, पृष्ठ वंश (vertebral column) जिस के कारण शरीर को चलने फिरने में एवं पुरे दिन सीधे खडे रहने में मदद मिलती है। स्वाभाविक शरीर रचना को ध्यान में रखते हुए जब शरीर को देखा जाए तो 'S' आकार दिखाई देता है। इस आकार के कारण शरीर भार का योग्य विभजन होता है। पृष्ठ वंश की अस्थियों मे कुछ इस प्रकार की रचना होती है, जिससे झूकने में या मूडने में बिना तकलीफ सुविधा हो।
आज कशेरूकागत संधिगत वात (SpinalOsteoarthritis) अधिक प्रमाण में दिखाई देने लगा है, जिसे अधिकतर लोग (Spondylosis) के नाम स पहचानते है। स्पॉण्डीलोसिस यह धातुक्षय आकर्षण से होने वाला व्याधि है, जिसमें कशेरूका अस्थियों का क्षय एवं उनकी कार्यहानी देखने मिलती है। इसमे चक्रिका (Disc), संधियाँ तथा पशियों की विकृती होती है। दो कशेरूका के बीच में उपस्थित चक्रिका के कारण रहने वाला कूशन (गद्दी) समान परिणाम कम हो जाता है। पेशीयाँ कमजोर हा जाती है, तथा अस्थियों पर एक प्रकार की वृद्धि नजर आती है जिसे स्पर कहा जाता है। इस प्रकार के बदलाव के कारण कभी कभी एक हाद वातावह नाडी अर्थात नस दब जाती है, जिससे अत्याधिक वेदना उत्पन्न होती है।
आयुर्वेद के अनुसार, सामन्य अवस्था में वात दोष का एक प्रमुख कार्य शरीर के विविध अवयवों को अलग अलग रखना है। प्रकुपित अवस्था मे वात दोष के कारण अस्थि तथा संधियो में क्षय की अवस्था निर्माण होती है, जिसे आम तोर पर अस्थिक्षयजन्य विकार कहते है। इसी के साथ प्रकुपित वात दोष दो संधियों के बीच में उपस्थित कफ को कम करता है, यह कफ न सिर्फ संधि की गतिविधीयों को सुलभ करता है, बल्की उससे संधियों का पोषण भी होता है। इसके घटने से संधियों की गतीविधयों में रुकावट एवं वेदना निर्माण होती है।
अत्यधिक मात्रा में कसैले, कडुए एवं तेज ऐसे पदार्थों का सेवन साथ हि अत्यंत सुखे एवं वात बढाने वाले पदार्थ, अल्प मात्रा में आहार तथा अधिक समय तक भूखे रहना, अत्यधिक व्यायाम, अधिक मात्रा में शरीर क्रियाएँ, मलमूत्रादि नैसर्गिक वेगों का धारण करना, बढती उम्र यह इस रोग का एक प्रधान कारण है , लेकीन आजकल के अयोग्य रहन सहन,शारीरिक एवं मानसिक तान तनाव के कारण यह रोग तारूण्यावस्था में भी बडी मात्रा मे दिखाई दे रहा है।
अस्थिक्षय की प्रक्रिया का असर गर्दन, पीठ और कमर पर दिखायी देता हैं। इसके पीछे गर्दन की रचना एवं उसके अधिक प्रमाण में होने वाली क्रिया का परिणाम है। कमर से संबंधित होने वाले स्पॉण्डीलोसिस पुरूषो की तुलना में अधिकतर स्त्रीयों में देखने मिलता है। चालीस साल से अधिक उम्र वाले लोगों में ज्यादातर होता है इसमें अयोग्य प्रकार से बार बार होने वाली क्रियाओं के कारण वेदना बढजाती है।
योग्य पद्धती से उपचार न करने पर अथवा उपेक्षा करने पर अत्याधिक मात्रा मे झुनझुनाहट, चलन वलन में बाधा एवं कई रोगीयों में विकारग्रस्थ अंशिक रूप में कर्महानी उत्पन्न होती है।
पृष्ठ वंश विकार के लिए योग्य /अयोग्य आहार - विहार :-
# योग्य आहार विहार :- चावल, गेंहू ,मूँग, कुलथ, तिल, गाय का घी, परवल, लौकी, अनार, लहसून, दूध आदी
औषधी तेल से मालिश, स्वेदन, विश्राम.
# अयोग्य आहार विहार :- जव, चना, मटर, करेला, सुपारी, जामून, शुष्क मांस, बांसे पदार्थ, तिखा खाना, ठंडा पानी.
रात्री में देर से सोना, मानसिक तनाव, वेगावरोध, अत्याधीक मैथून, रुक्ष एवं ठंडी हवा का सेवन .
उपयक्त योगासन : -
भुजंगासन, पर्वतासन, अर्धमत्स्येन्द्रासन, उत्तानपादासन, सुप्तवज्रासन, कोनासन,शवासन.
ध्यान रखने जैसी बाते : -
# विश्राम करना आवश्यक
# अधिक समय तक लेटना वर्ज्य है
# शरीर स्थिती को योग्य रखें
# शरीर का वजन नियंत्रण में रखे
# भारी चीजे उठाना, बार बार झुकना एवं मुडना आदि बंद करे
# व्यायाम अथवा योगसन को योग्य निगरानी में करें
# व्यायाम करते समय किसी भी प्रकार का झटका न लगने पाये
# अत्यंत नाम गद्दी का प्रयोग न करे
# सोते समय शरीर स्थिती को योग्य रखने हेतु योग्य गद्दी एंव तकिये का प्रयोग करे.
Please take temporarary medecines - Suvarnamaha Yog (dhootpapeshwar) 2-2-2 thrice a day with water.
Trayodashang guggal 2-2 twice a day with water.
Next Steps
Consult Ayurvedic physician
Health Tips
While riding bike please don't do hands fully straight on handle, please keep Little fold in hands.